कर्म का परिणाम भोगना ही पड़ता है, इसलिए ऐसा करें कि बाद में परिणाम कष्टकारी न हो—– भाई श्याम सुंदर भरत चरित्र का आदर सहित श्रवण, पठन, चिंतन ,मनन करने से भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है ——-भाई श्याम सुंदर

कर्म का परिणाम भोगना ही पड़ता है, इसलिए ऐसा करें कि बाद में परिणाम कष्टकारी न हो—– भाई श्याम सुंदर
भरत चरित्र का आदर सहित श्रवण, पठन, चिंतन ,मनन करने से भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है ——-भाई श्याम सुंदर
बिलाईगढ़ /प्रज्ञा न्यूज़ 24 छत्तीसगढ़ /शैलेंद्र देवांगन
बिलाईगढ—–अनुविभाग मुख्यालय बिलाईगढ़ के नजदीक स्थित ग्राम बांस उरकुली में दो दिवसीय संगीतमयी रामकथा का आयोजन किया गया है। प्रथम दिवस दिनांक 29/ 3./2024 को बेलटिकरी से डोलकुमार जायसवाल, पंडरीपानी से पवनदास महंत, गोविंदवन से पंचराम साहू ,शिवकुमार वैष्णव, कोसमसरा (कसडोल) से मोहितराम यादव, बिलाईगढ़ से प्रवीण सोनी, खुरसूला से नवधा पटेल, मलुहा से अशोक चंद्रा एवं बांसउरकुली से श्यामलाल पटेल,बाबूलाल यादव व कुमारी निकिता द्वारा सुमधुर भजनों के साथ मानस गायन कर श्रोता समाज को भाव विभोर कर दिए। ग्राम दोमुहानी से रामाधीन यादव, बिलाईगढ़ से चैतू राम राकेश, नवापारा प्राथमिक शाला के गुरुजी रूपनाथ ध्रुव एवं नवापारा माध्यमिक शाला के प्रधान पाठक श्री विद्या भूषण बांसवार द्वारा रामकथा सुनाया गया। रूपनाथ ध्रुव गुरुजी ने कहा कि बच्चे हमेशा देखकर सिखते हैं, सुनकर नहीं।सुनाकर, उपदेश देकर छोटे बच्चों को नहीं सिखाया जा सकता ।इसलिए माता-पिता बच्चों के सामने हमेशा सही काम करते हुये पेश आएं। यह बच्चों के लिए ,परिवार व समाज के लिए ठीक होगा।श्री विद्या भूषण बांसवार प्रधान पाठक ने कहा कि बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी देना चाहिए, ताकि बड़े होकर अच्छे नागरिक बनकर अपना, अपना परिवार व देश समाज के लिए वह अच्छा कार्य करे ।हर बच्चों को पालकगण प्रतिदिन स्कूल जरूर भेजें।
ट्रांस महानदी क्षेत्र के प्रमुख रामायणी ग्राम बांसउरकुली निवासी भाई श्यामसुंदर पटेल ने भी कथा सुनाया। उन्होंने अपने सारगभित प्रवचन में बताया कि इस संसार में मनुष्य शरीर मिलने के बाद व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसका फल उसे कभी न कभी अवश्य भोगना पड़ता है ।अच्छे कर्म का अच्छा फल व बुरे कर्म का बुरा फल मिलता है। व्यक्ति अपने ही किए गए कर्मों का फल भोक्ता है। श्री रामचरितमानस में प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं कि— काहु न कोउ सुख-दुख कर दाता। निज कृत कर्म भोग सब भ्राता।। कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।जो जस करइ हो तस फल चाखा ।।जब अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्म अंततः व्यक्ति के लिए दुखदाई होता है, तो व्यक्ति को सोच विचार कर अच्छे कार्यों को करना चाहिए। जिससे परिवार देश व समाज का भला हो।
आगे रामायणी भाई श्यामसुंदर ने और कहा कि जीव अनादि काल से विभिन्न योनियों में भटकते आ रहा है। भगवान उसे कभी कृपा करके मानव तन प्रदान करते हैं, ताकि व्यक्ति अपने अंतिम लक्ष्य भागवत्प्रेम को प्राप्त कर ले। मनुष्य शरीर में उपासना, भक्ति आदि करके व्यक्ति भगवत्प्राप्ति या भागवत्प्रेम को प्राप्त कर सकता है ।जब तक जीव को भगवत्प्रेम की प्राप्ति नहीं होती तब तक उसकी यात्रा समाप्त नहीं होती। अर्थात भगवत प्राप्ति या भगवत्प्रेम की प्राप्ति ही मनुष्य का अंतिम लक्ष्य है ।शायद इसी कारण हमारे भारत देश के प्रसिद्ध संत कबीरदासजी ने कहा है कि—- पोथी पढ़-पढ़ जग मुआं पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।। श्री रामचरितमानस में वर्णित भरतजी के दिव्य चरित्र को जो व्यक्ति आदर के साथ पठन, श्रवण, मनन, चिंतन करता है, उसे व्यक्ति के अंतिम लक्ष्य भागवत्प्रेम की प्राप्ति होती है। संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदासजी भी अयोध्या कांड के फल श्रुति में लिखे हैं कि— भरत चरित्त कर नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं। सीय राम पद प्रेम अवशि होहिं भव रस विरति।।
इस कथा केत आयोजन में सरपंच श्री गणेशराम यादव, बाबूलाल यादव, जनकराम पटेल, रामकुमार पटेल, जवाबाई यादव आदि लोगों का कार्य बहुत ही प्रशंसनीय है।