अशोक गहलोत की दावेदारी कमजोर, सोनिया गांधी के ये करीबी कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में आगे

सोनिया गांधी का प्लान फेल हो गया
राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच संतुलन बना कर सोनिया गांधी एक तीर से दो शिकार करना चाहती थीं, लेकिन गहलोत समर्थकों ने ऐन वक्त पर बवाल काट के सब बेकार कर दिया। सोनिया गांधी को लगा था कि अगर गहलोत को अध्यक्ष पद की कुर्सी दे दी जाए और पायलट को राजस्थान का सीएम बना दिया जाए तो एक वफादार पार्टी संभाल लेगा और दूसरा राज्य में कांग्रेस का झंडा बुलंद करेगा। लेकिन राजनीति में टाइमिंग का खेल बहुत अहम होता है, टाइमिंग गड़बड़ा गई।
गहलोत को प्रेशर पॉलिटिक्स का मौका मिल गया और उन्होने विधायकों की बस यात्रा करवाकर शक्ति प्रदर्शन कर दिया। पिछले 24 घंटों में जो कुछ भी किया सिर्फ गहलोत ने किया है। कांग्रेस आलाकमान तमाशबीन बना रहा। 10 जनपथ कुछ नहीं कर सका।
गहलोत क्या होगा?
कहीं ऐसा तो नहीं कि ये आंधी से पहले की खामोशी है। ये दांव गहलोत पर भी उलटा पड़ सकता है यानी सीएम की कुर्सी भी चली जाए और कांग्रेस का अध्यक्ष भी ना बनाया जाए। अब दो घटनाओं पर नजर रखने का वक्त है। पहला ये कि राजस्थान से लौटे पर्यवेक्षक गहलोत की कैसी और कितनी शिकायत सोनिया से करते हैं और दूसरा कमलनाथ का क्या रोल होता है। कमलानाथ को खास तौर पर दिल्ली बुलाया गया है। अब देखना ये है कि क्या कमलनाथ गहलोत और पायलट के बीच सुलह कराएंगे या फिर वो खुद ही अध्यक्ष पद के दावेदार बना दिए जाएंगे। कांग्रेस में दो वैकेंसी हैं और दोनों के लिए हाईकमान की पहली पसंद पर तो बट्टा पहले ही लग गया है।