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देवउठनी एकादशी कब, इसके बाद शुरू हो जाएगा मांगलिक कार्यक्रम…जानें डेट और ये कथा

रायपुर : हरेंद्र बघेल : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है, इस बार यह शुभ तिथि 23 नवंबर दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु चार महीने बाद योग निद्रा से जागते हैं और इसके बाद से ही मांगलिक कार्यक्रम आरंभ हो जाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में देव उठनी एकादशी का महत्व बताते हुए गन्ने के कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं। इन उपायों के करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की विशेष कृपा रहेगी और साल भर तक धन की कमी नहीं होगी। आइए जानते हैं देव उठनी एकादशी के दिन किए जाने वाले गन्ने के इन उपायों के बारे में….

कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि समाप्त – 23 नवंबर 2023, रात 09.01

पूजा समय – सुबह 06.50 – सुबह 08.09

रात्रि का मुहूर्त – शाम 05.25 – रात 08.46

व्रत पारण समय – सुबह 06.51 – सुबह 08.57 (24 नवंबर 2023)

:देवउठनी एकादशी कथा

धर्म ग्रंथों के स्वंय श्रीकृष्ण ने इसका महाम्त्य बताया है, इसके अनुसार एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था. एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए. राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है. राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो.

श्रीहरि ने ली राजा की परीक्षा

सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा. राजा ने शर्त मान ली. अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया. मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी. राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं. रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी

राजा के सामने धर्म संकट

राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई. बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई. राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए. सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए.

विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम परीक्षा में पास हुए, कहो क्या वरदान चाहिए. राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए. राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैं

कुठ लोक को चला गया.

 

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