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भगवान वस्तु नहीं, भाव के भूखे हैं— सुश्री आकृति तिवारीजी 

भगवान वस्तु नहीं, भाव के भूखे हैं— सुश्री आकृति तिवारीजी 

सुपात्र को यथाशक्ति दान अवश्य करें— सुश्री आकृति तिवारीजी 

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बिलाईगढ——-ग्राम बेलहा विकासखंड बिलाईगढ़ में फिरतू राम साहू –राधाबाई, शंकरलाल साहू –लीलाबाई ,रामानंद साहू– तिरथ साहू एवं उनके परिवार द्वारा विश्वमंगल हेतु संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा आयोजित है। यह कथा दिनांक 18 3.2025 मंगलवार को तुलसी वर्षा सहस्त्रधारा हवन पूर्णाहूती के साथ विश्राम लेगी ।कथा प्रतिदिन दोपहर लगभग 3:00बजे से हरि इच्छा तक जारी है ।आयोजक परिवार एवं कथावाचिका सुश्री आकृति तिवारीजी ने अधिक से अधिक लोगों को आकर इस कथा से लाभ उठाने के लिए निवेदन किए हैं।

श्रीधाम वृंदावन से आई हुई सुश्री आकृति तिवारीजी ब्यासासीन होकर अपनी मधुर वाणी में ज्ञानयुक्त भावमयी कथा का रसास्वादन करा रही हैं। कथा के चतुर्थ दिवस दिनांक 14/03/ 2025 शुक्रवार को कथा सुनाती हुई कथावाचिका ने बताई कि भगवान वस्तु नहीं भाव के भूखे हैं। यदि भगवान किसी वस्तु, रुपया- पैसा के भूखे होते तो दुनिया के धनपतियों को पहले मिलते किंतु ऐसा कभी सुना, देखा नहीं गया है ।वे हमेशा व्यक्ति के भाव को देखते हैं। उनकी भावपूर्ण भक्ति कर अमीर गरीब स्त्री पुरुष सभी वर्ण आश्रम के व्यक्ति भगवान को प्राप्त कर सकते हैं।किंतु हम कलयुग के अधिकांश व्यक्ति कुछ रुपए या कुछ वस्तु भेंटकर सारी सुख संपत्ति एवं खुशियां भगवान से प्राप्त कर लेना चाहते हैं। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि भगवान को कुछ भेंट देकर प्रसन्न कर लिया जाए। प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी भी श्रीरामचरितमानस में लिखे हैं कि– भाववश्य भगवान, सुख निधान करुणा भवन ।तजि ममता मद मान, भजिय सदा सीतारमन।। अर्थात भगवान मनुष्य के भाव को देखते हैं ,वे किसी व्यक्ति के सांसारिक योग्यता रुपया पैसा पदार्थ नहीं देखते । कथावाचिका ने ध्रुवजी , राजा प्रियव्रत, ऋषभदेवजी के वंशजो की कथा सुनाती हुई बताई कि हमारे इस भारत देश में तीन भरत हुए हैं । एक भरत श्री रामजी के छोटे भाई हुए हैं, जो भक्तियोग का पाठ सीखाते हैं। दूसरा शकुंतला नंदन भरत हुये जो कर्मयोग की शिक्षा समाज को दिए और तीसरा जड़भरत हुए जो श्रीमद्भागवत में राजा रहूगण को ज्ञानयोग की शिक्षा प्रदान करते हैं। तीनों भरत के कारण इस अजनाभ खंड का नाम भारतवर्ष पड़ा है। यह भारत भूमि धन्य है, जहां देवता भी मनुष्य योनि प्राप्त करने की याचना करते रहते हैं। हम लोग आज बड़े सौभाग्यशाली हैं कि इस भारत भूमि में जन्म लेकर इस पावन ग्राम बेलहा में श्रीमद् भागवत की दिव्य कथा का रसास्वादन कर रहे हैं।

आगे कथावाचिका ने 28 नरकों का वर्णन, अजामिल प्रसंग में भगवान के नाम की महिमा का गुणगान कर श्रोता समाज को सुनाई।राजा बलि एवं वामन भगवान की कथा सुनाती हुई बताई कि राजा बलि ने अपने गुरुदेव शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी भगवान बामन को दान किया। इसका तात्पर्य यह है कि यदि सुपात्र व्यक्ति मिलता है तो उसे यथाशक्ति दान अवश्य करना चाहिए ।गीता में भगवान श्रीकृष्णचंद्रजी भी अर्जुन से कहते हैं कि– देशे काले च पात्रे तद् दानं सात्विकम स्मृतम्।। अर्थात देशकाल पात्र के अनुसार दान देना सात्विक दान कहलाता है। भगवान श्रीरामचंद्रजी भी जब महामुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर धनुष यज्ञ में जाते हैं, तो गंगा नदी में स्नान कर ब्राह्मणों को दान देते हैं। मानस में प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं कि –तब प्रभु ॠषिन्ह समेत नहाए। विविध दान महि देवन्ह पाए।।आगे कथावाचिक ने भगवान श्री रामचंद्रजी के दिव्य चरित्रों में से प्रमुख प्रमुख प्रसंगो का वर्णन कर सुनाई ।उसके बाद भगवान श्रीकृष्णचंद्रजी के प्रगटोत्सव की कथा को विस्तार से कह कर सुनाई। कथावाचिका ने बताई कि श्रीकृष्ण लीला में इंद्रियों को सहज समाधि की ओर ले जाकर परमानंद की अनुभूति कराने के लिए श्रीभगवान नारायण, नर रूप से गोकुल में प्रकट होते हैं। गोपिया बधाई गीत गाती है– नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की। और बृजवासी गाते हैं– नंद जी के अंगना में बज रही आज बधाई। बधाई गीत में श्रोता समाज खड़े होकर खूब नृत्य किये एवं कथा पंडाल में आनंद उत्सव मनाया गया। कथावाचिका ने बताई कि कल कथा में श्रीकृष्णचंद्र जी के बाल लीलाओं का एवं गोवर्धन पूजा, 56 भोग की कथा सुनाई जाएगी। आप लोग अधिक से अधिक संख्या में समयानुसार आवें। आप और हम सभी मिलजुल कर आनंद उत्सव मनाते हुए कथा का लाभ उठाएंगे।

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