छत्तीसगढ़रायपुर

देश में पहली बार सरकारी संस्थान में भाप से हृदयरोगी के छाती से निकाला गया संक्रमित वायर

रायपुर। राजधानी के आंबेडकर अस्पताल में स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआइ) में 63 वर्षीय हृदयरोगी के छाती की चमड़ी से बाहर निकले 12 साल पुराने पेसमेकर के संक्रमित तथा पत्थर के समान कठोर हो चुके वायर को लेजर लीड एक्सट्रैक्शन तकनीक से भाप बनाकर निकाला गया है। कार्डियोलाजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार देश में अभी तक किसी भी शासकीय हृदय चिकित्सा संस्थान में संपन्न् हुई यह पहली प्रक्रिया है।
इससे पहले देश के गवर्नमेंट आफ कर्नाटक के आटोनामस (स्ववित्तपोषित) संस्थान श्री जयदेव इंस्टीट्यूट आफ कार्डियोवास्कुलर साइंसेज एंड रिसर्च, मैसूर में वायर को निकालने के लिए ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई थी। आंबेडकर अस्पताल में मरीज का निश्शुल्क इलाज हुआ है। जबकि, निजी अस्पतालों में करीब पांच लाख रुपये का खर्च आता। राजनांदगांव निवासी मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित पेसमेकर अपने मूल स्थान से स्वत: अन्यत्र विस्थापित हो गया था। साथ ही पेसमेकर का वायर जो हृदय तक जाता है, वह भी संक्रमित हो गया था।
वर्ष-2010 में लगाया गया था पेसमेकर
डा. स्मित श्रीवास्तव ने बताया कि एक निजी अस्पताल में पांच मई 2010 को वर्ष-2020 तक के लिए मरीज को पेसमेकर लगाया गया था। समय पूरा होने पर 17 अगस्त 2020 को एक निजी अस्पताल में पेसमेकर में एक और बैटरी डाली गई। बैटरी डालने के बाद पाया गया कि पेसमेकर छाती की चमड़ी से बाहर आ गया है। उसको प्लास्टिक सर्जन ने तीन बार आपरेट किया, इसके बाद भी पेसमेकर चमड़ी से बाहर निकल गया। वायर भी संक्रमित हो गया था।
यह थी चुनौती
डा. श्रीवास्तव ने बताया कि वायर निकालने के दौरान चुनौती यह थी कि उसे किस तरीके से निकाले क्योंकि भारत में जो विधि चल रही है वह मैकेनिकल विधि है। देश में प्रतिवर्ष लगभग 100 वायर लीड मेकेनिकल तरीके से निकाले जाते हैं। अभी पहली बार एसीआइ में लेजर द्वारा लीड एक्सट्रैक्शन किया गया।
प्रक्रिया के दौरान दो बार टूटी ब्लेड
पहली बार आपरेशन होने के बाद पेसमेकर और लीड के चारों तरफ का मांस हड्डी व पत्थर के समान कठोर हो गया था। 12 साल पुरानी होने के कारण वह इतना कठोर हो गया था कि डिसेक्शन करने वाली ब्लेड प्रक्रिया के दौरान दो बार टूट गई तथा उसकी धार बोथरी हो गई। इसके बाद एक बड़ी शीथ के माध्यम से ग्लाइड लाइट लेजर कैथेटर को पुरानी पेसमेकर की लीड के ऊपर चढ़ाया गया और 15 से अधिक लेजर के उधा उर्जा युक्त विकिरण देकर फाइब्रोसिस और मांसपेशी को भाप में परिवर्तित किया गया।
डाक्टरों की टीम
एसीआइ के कैथलैब में साढ़े तीन घंटे तक चली इस प्रक्रिया में डा. स्मित श्रीवास्तव, डा. योगेश विशनदासानी, डा. प्रतीक गुप्ता, डा. अनन्या दीवान, डा. गुरकीरत अरोरा, एनेस्थेटिस्ट डा. ओमप्रकाश, नर्सिंग स्टाफ आनदं एवं निर्मला, टेक्नीशियन आईपी वर्मा, खेम सिंह, प्रेमचंद, महेंद्र एवं बद्री शामिल थे।

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