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छत्तीसगढ़ में पहली बार… मलाशय के असाध्य कैंसर से होने वाले असहनीय दर्द का सफल इलाज

डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय, रायपुर

अम्बेडकर अस्पताल की बड़ी उपलब्धि, बगैर चीरा लगाए युवक को मिला आराम

दर्द इतना ज्यादा कि दो माह से ठीक से सोया नहीं मरीज, सोता था तो बैठे-बैठे

रायपुर. 09 मई 2023. राज्य के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने पहली बार मलाशय के असाध्य कैंसर से होने वाले दर्द से राहत देते हुए बगैर चीरा लगाये सुपीरियर हाइपोगैस्ट्रिक प्लेक्सस ब्लॉक नामक इलाज करके बड़ी उपलब्धि हासिल की है। रेडियोलॉजी विभाग में ये सफल प्रक्रिया/प्रोसीजर इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे एवं टीम के द्वारा की गई। डॉ. विवेक पात्रे के मुताबिक संभवतः यह मलाशय के कैंसर की बीमारी में दर्द को खत्म करने के लिये छत्तीसगढ़ राज्य में किया गया पहला सफल प्रोसीजर है। प्रोसीजर के बाद मरीज को दर्द से राहत मिल गई है। मरीज के घरवालों के अनुसार मलाशय के कैंसर के कारण मरीज असहनीय दर्द से पीड़ित था जिसकी वजह से वो पिछले 2 महीने से सिर्फ बैठ पाता था, नींद भी बैठ के लेता था खड़ा होना तो दूर की बात थी। उसे अब दर्द से अब पूर्णतः राहत मिल गई है। स्वस्थ होने के बाद मरीज अपने दैनिक कार्य करने में सक्षम है जो अब तक उठने और लेटने में भी सक्षम नहीं था।

डॉ.(प्रो.) विवेक पात्रे बताते हैं कि, एक 30 साल का युवक जिसको मलाशय का कैंसर (रेक्टल कैंसर) हो गया था। इस बीमारी के कारण वह असहनीय पीड़ा से गुजर रहा था। इस दर्द से निज़ात दिलाने के लिए घरवालों ने अलग-अलग संस्थानों में बहुत प्रयत्न किया लेकिन सफलता नहीं मिली। कैंसर की बीमारी में दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं से भी कोई आराम नहीं मिल रहा था। इसके बाद दर्द के इलाज हेतु अम्बेडकर अस्पताल स्थित क्षेत्रीय कैंसर संस्थान के डॉ. प्रदीप चंद्राकर ने डॉ. पात्रे से संपर्क करने की सलाह दी। डॉ. पात्रे ने मरीज की हिस्ट्री का सूक्ष्म अध्ययन कर मरीज की लगातार 2 महीने से असहनीय पीड़ा को देखते हुए, बिना चीर-फाड़ वाले जटिल प्रक्रिया को करने का निर्णय लिया, जिसमें जरा सी भी चूक होने पर मरीज की जान को खतरा हो सकता था। घरवालों ने जब इस प्रक्रिया को करने के लिए सहमति दी तब जोखिम उठा कर डॉ. विवेक पात्रे एवं उनकी टीम द्वारा इस जटिल प्रक्रिया को किया गया और इसमें सफलता प्राप्त हुई।

इस प्रक्रिया में दर्द निवारक गुणों वाली दवा फिनोल का इस्तेमाल किया गया जिसे बिना बड़े ऑपरेशन के नीडल के माध्यम से पीठ के दोनों हिस्सो में इंजेक्ट किया गया। इस दवा को बनाने में बायोकेमिस्ट्री विभाग के डॉ. देवप्रिय रथ का विशेष सहयोग रहा। प्रक्रिया के सफल हो जाने के बाद 30 वर्षीय युवक को दर्द से राहत मिल गई।

कैंसर विभाग के विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप चंद्राकर ने बताया कि आंत के आखिरी कुछ इंच के हिस्से को मलाशय कहा जाता है। यह कोलोन (बड़ी आंत) के आखिरी हिस्से के अंत से शुरू होता है और यह गुदा के छोटे, संकीर्ण मार्ग तक जाता है। शरीर के कई अन्य अंगों की तरह मलाशय में भी कैंसर जैसे रोग होने के अधिक जोखिम रहते हैं। मलाशय कैंसर के लक्षणों में अनियमित रूप से मल आना, पेट में के निचले हिस्से में असहनीय दर्द होना, मल में खून आना और आंतों में रुकावट होना आदि शामिल है।

इस प्रक्रिया में प्रमुख रूप से डॉ. प्रेम चौधरी, डॉ. रसिका, डॉ. सूरज, डॉ.कवि, डॉ. अनामिका, डॉ. पल्लवी, डॉ. लीना एवं तकनीशियन गजोधर व रूप सिंह का विशेष सहयोग रहा। मरीज का इलाज डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना से निशुल्क हुआ।

ऐसे की जाती है बिना चीरा वाली प्रक्रिया
डॉ. विवेक पात्रे बताते हैं कि सुपीरियर हाइपो गैस्ट्रिक प्लेक्सस ब्लॉक एक ऐसी दर्द निवारक प्रक्रिया है जिसमें पेट के निचले हिस्से से दर्द की संवेदना को मस्तिष्क तक ले जाने वाली नसें (सुपीरियर हाइपो गैस्ट्रिक प्लेक्सस) में सीटी स्कैन मशीन की मदद से इंजेक्शन के माध्यम से फिनोल को डाला जाता है। फिनोल को डालते ही मरीज को फौरन दर्द से राहत मिल जाता है। रीढ़ की हड्डी और पीठ के निचले हिस्सों के बीचों-बीच से आगे जाते हुए, सुपीरियर हाइपो गैस्ट्रिक प्लेक्सस तक पहुंचकर दवाई डालना बहुत जोखिम भरा रहता है।

डॉ. विवेक पात्रे के अनुसार, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में मरीजों के जीवन को दर्दरहित बनाने के लिए इस प्रकार के ब्लॉक लगाए जाते हैं जिससे मरीज अपना जीवन सामान्य लोगों की तरह व्यतीत कर सकता है।

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