
बिच्छू के डंक से वेंटिलेटर पर पहुंची 5 माह की बच्ची अब सेफ है। शंकराचार्य मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने उसकी जान बचा ली है। शुक्रवार को बिच्छू के डंक की चपेट में आने के कारण कुटेलाभाटा निवासी बच्ची की हालत गंभीर हो गई थी। मेडिकल कॉलेज पहुंचने तक उसकी पल्स रेट 200 के पार जाना, फेफड़ों में पानी भरना व यूरीन आना बंद हो गया था।
एंटी स्नैक वेनम की तरह, एंटी स्कोर्पियन वेनम आसानी से मिलने की गुंजाइश नहीं थी, लिहाजा पीडियाट्रिक डिपॉर्टमेंट के एचओडी डॉ. ज्ञानेश मिश्रा ने बच्ची काे तत्काल वेंटिलेटर सपोर्ट पर रख दिया। इससे फेफड़ों में भरा पानी खत्म करने, यूरीन आउट-पुट मेनटेन करने का समय मिला। बच्ची अब सुरक्षित है।
अगर थोड़ी चूक होती तो नहीं बचती बच्ची की जान
डॉ. ज्ञानेश मिश्रा के मुताबिक बिच्छू के डंक के बाद परिजनों ने झाड़-फूक व स्थानीय अयोग्य डॉक्टरों पर भरोसा नहीं किया। जिला अस्पताल, निजी अस्पताल गए फिर भी 6 घंटे के भीतर वेंटिलेटर सुविधा युक्त अस्पताल पहुंच गए। वेंटिलेटर सपोर्ट से मरीज को जिंदा रखकर, जहर के प्रभाव से प्रभावित होने वाले अंगों को ठीक करने का मौका मिल गया। बच्ची की जान बचा ली गई। यदि परिजन अंधविश्वास में पड़ते तो बच्ची को खतरा बढ़ सकता था।
बिच्छू का जहर सांप की तरह खतरनाक होता है
साफ में मुख्यत: दो प्रकार का जहर होता है। एक को न्यूरो टॉक्सिन और दूसरे का हेमेटोटाक्सिन कहते हैं। न्यूरो टॉक्सिन जहर वाले साफ के काटने से नर्वस सिस्टम फेल होने लगता है। हेमेटोटाक्सिन जहर वाले के काटने से ब्लड में खराबी होने लगती है। दोनों स्थिति में वेंटिलेटर युक्त अस्पताल पहुंचने पर पीड़ित की जान बचाना आसाना होता है। बिच्छू का जहर भी सांप की तरह ही होता है। इसलिए पीड़ित को जल्द से जल्द अस्पताल ले जाना जरूरी होता है।
जहर की मात्रा ज्यादा हो तो मधुमक्खी भी जानलेवा
सांप का काटना हो या बिच्छू का डंक मारना, जहर की मात्रा अधिक होने पर जान जाने का खतरा होता है। मधुमक्खी के डंक से भी जान चली जाती है। क्योंकि सांस की नली में सूजन आने से पीड़ित सांस नहीं ले पाता है। वेंटिलेटर से ऐसे मरीजों के बेहतर इलाज का समय मिलता है। इसलिए लोग झाड़ फूंक के चक्कर में कभी न पड़ें। पीड़ित को तत्काल अस्पताल पहुंचाएं।