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पुरानी पेंशन स्कीम के अटकने का खतरा:डीए बढ़ाने पर सालाना 22 सौ करोड़ रुपए खर्च की चुनौती

कोरोना की मार और केंद्र सरकार के असहयोग की वजह से राज्य में बड़े आर्थिक फैसले नहीं हो पा रहे हैं। सरकार के समक्ष अब एक विचारणीय प्रश्न खड़ा हो गया है कि वह कर्मचारियों को केंद्र के समान महंगाई भत्ता दे या पुरानी पेंशन स्कीम को प्राथमिकता दे। राज्य के सामने उस समय और चुनौती खड़ी हो गई जब केंद्र ने पीएफआरडीए (पेंशन स्कीम) के हजारों करोड़ लौटाने से इंकार कर दिया।

राज्य के लाखों कर्मचारियों की मांग जायज है कि उन्हें महंगाई की मार से बचाने के लिए महंगाई भत्ता अपेक्षानुरूप मिलना चाहिए लेकिन वित्तीय प्रबंधन की चुनौती ने आंदोलन की स्थिति पैदा कर दी है। इसी वजह से सरकार का अमला अब इस बात पर विचार कर रहा है कि डीए और पुरानी पेंशन योजना में प्राथमिकता किसे दी जाए।

दरअसल, पुरानी पेंशन स्कीम के लिए राज्य को अभी से पेंशन निधि सृजित करनी होगी और एक नियमित बचत को उसमें डालना होगा। केंद्र के समान डीए देने पर सरकार पर सालाना 22 सौ करोड़ का वित्तीय भार आएगा। बता दें कि अभी सरकार कर्मचारियों को 22 प्रतिशत डीए दे रही है, जिसपर 55 सौ करोड़ का खर्च आ रहा है। राज्य सरकार केवल वेतन भत्तों पर 25 हजार करोड़ खर्च कर रही है।

केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों को 34 प्रतिशत डीए दे रही है। कर्मचारियों की मांग है कि उनको भी उनके समान ही डीए दिया जाए। वित्तीय मामलों के जानकारों का कहना है कि कोरोना काल में जहां आमदनी कम हुई और अतिरिक्त खर्चे बढ़ गए। इस कारण राज्य की वित्तीय स्थिति पर विपरीत असर पड़ा। ऐसे में सरकार को वित्तीय प्रबंधन की दृष्टि से संसाधनों की दीर्घकालीन प्लानिंग करनी होगी।

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