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कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने की घोषणा, तालाबों की नीलामी नहीं हाेगी-पट्‌टा दिया जाएगा…

हरेन्द्र बघेल  रायपुर :  छत्तीसगढ़ की मछली पालन नीति बदलने जा रही है। 24 नवम्बर को प्रस्तावित राज्य कैबिनेट की बैठक में इसपर मुहर लग सकती है। कृषि एवं जल संसाधन मंत्री रविंद्र चौबे ने सोमवार को रायपुर में इसकी घोषणा की। मछुआरा सम्मेलन के उस मंच पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मंच पर मौजूद थे।

रायपुर के साइंस कॉलेज स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित मछुआरा सम्मेलन में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, मछुआ समुदाय के लोगों की मांग और उनके हितों को संरक्षित करने के लिए तालाब और जलाशयों को मछली पालन के लिए नीलाम करने के की जगह लीज पर देने का फैसला हुआ है। इसमें वंशानुगत-परंपरागत मछुआ समुदाय के लोगों को प्राथमिकता देने का निर्णय भी लिया गया है। चौबे ने कहा, तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों के जलक्षेत्र आवंटन सीमा में 50% की कमी कर ज्यादा से ज्यादा मछुआरों को रोजी-रोजगार से जोड़ने का प्रस्ताव है। प्रति सदस्य के मान से आवंटित जलक्षेत्र सीमा शर्त घटाने से लाभान्वित मछली पालकों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।

बताया जा रहा है, नई मछली पालन नीति में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार मछली पालन के लिए तालाबों एवं सिंचाई जलाशयों की अब नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि उन्हें 10 साल के पट्टे पर दिया जाएगा। तालाब और जलाशय का पट्‌टा आवंटन के समय में सामान्य क्षेत्र में ढ़ीमर, निषाद, केवट, कहार, कहरा, मल्लाह जैसे वंशानुगत मछुआ समूह और मत्स्य सहकारी समिति को प्राथमिकता दिया जाना है। वहीं आदिवासी अधिसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति वर्ग के मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को प्राथमिकता दी जाएगी।

तालाब-जलाशय की सीमा को छोटा किया गया

बदलाव के जरिये मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति अथवा मछुआ व्यक्ति को ग्रामीण तालाब के मामले में अधिकतम एक हेक्टेयर के स्थान पर आधा हेक्टेयर जलक्षेत्र तथा सिंचाई जलाशय के मामले में चार हेक्टेयर के स्थान पर दो हेक्टेयर जलक्षेत्र प्रति सदस्य/प्रति व्यक्ति के मान से आबंटित किया जाएगा। मछली पालन के लिए गठित समितियों का ऑडिट अभी तक सिर्फ सहकारिता विभाग द्वारा किया जाता था। प्रस्तावित संशोधन में सहकारिता एवं मछली पालन विभाग की संयुक्त टीम ऑडिट की जिम्मेदारी दी गई है।

ये प्राधिकारी कर पाएंगे पट्‌टा आवंटन

बताया गया, त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत औसतन 10 हेक्टेयर तक वाले तालाब एवं सिंचाई जलाशय को 10 वर्ष के लिए पट्टे पर आबंटित करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होगा। जनपद पंचायत 10 हेक्टेयर से अधिक एवं 100 हेक्टेयर तक, जिला पंचायत 100 हेक्टेयर से अधिक एवं 200 हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र तक का पट्‌टा दे सकता है। मछली पालन विभाग 200 हेक्टेयर से अधिक एवं एक हजार हेक्टेयर औसत जलक्षेत्र के जलाशय, बैराज को मछुआ समूह एवं मत्स्य सहकारी समिति को पट्टे पर देगा। नगरीय निकायों के तहत आने वाले जलक्षेत्र नगरीय निकाय के अधीन होंगे, इसे भी उसी नीति के तहत 10 वर्ष के लिए लीज पर आवंटित किया जाएगा।

मछुआ की परिभाषा भी बदला गया

इसके लिए मछुआ की परिभाषा को बदला गया है। संशोधन के मुताबिक मछुआ से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जो अपनी अजीविका का अर्जन मछली पालन, मछली पकड़ने या मछली बीज उत्पादन से करता हो। इसके तहत वंशानुगत-परंपरागत धीवर (ढ़ीमर), निषाद (केंवट), कहार, कहरा, मल्लाह को प्राथमिकता दिया जाना प्रस्तावित है।

धीवर समाज के सम्मेलन में हुआ था विवाद

करीब चार महीने पहले रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित धीवर समाज के सम्मेलन में नई मछली पालन नीति पर विवाद हुआ था। वहां छत्तीसगढ़ मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष एम.आर. निषाद ने कहा था, नीति में मछुआ शब्द की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। अगर उसमें वंशानुगत मछुआराें को शामिल नहीं किया गया तो दूसरे समाज के लोग उसका फायदा उठा लेंगे। उस समय कृषि मंत्री ने परिभाषा से उपजा भ्रम दूर करने का वादा किया था।

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