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भगवान माखन चोर नहीं चितचोर हैं—– पंडित देवकृष्ण शर्माजी 

भगवान माखन चोर नहीं चितचोर हैं—– पंडित देवकृष्ण शर्माजी 

सर्वोच्च आनंद की स्थिति है रास—, पंडित देवकृष्ण शर्माजी 

ब्रह्म और जीव का मिलन ही रास—-पंडित देवकृष्ण शर्माजी 

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बिलाईगढ-नगर पंचायत बिलाईगढ़ के दीवान बाड़ा थाना मोड़ के पास स्वर्गीय रेशमलाल देवांगनजी के पुण्य स्मृति में वार्षिक श्राद्ध के निमित्त संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन नरोत्तम, बलराम, प्रदीप, मधुकांत देवांगन, श्रीमती माधुरी, श्रीमती सुमन, श्रीमती उमेश्वरी, श्रीमती दीक्षा देवांगन एवं उनके परिवार द्वारा किया गया है। ग्राम टेमर, शक्ति //छत्तीसगढ़ //से आए हुए पंडित श्रीदेवकृष्ण शर्माजी व्यासासीन होकर अपनी मधुर, सरस , सुबोध शैली में भावमयी एवं ज्ञानवर्धक कथा का रसपान करा रहे हैं।

दिनांक 13 जुलाई 2024 को आरती, मंगलाचरण, नाम संकीर्तन के बाद भगवान श्री कृष्ण के मधुरातीमधुर बाल लीलाओं का शुभारंभ करते हुए बताये कि भगवान माखन चोर नहीं अपीतु चितचोर हैं। बाल लीलाओं का शुभारंभ करने से पहले प्रभु ने सर्वप्रथम पूतना का वध किया ।पूतना वासना का प्रतीक है ।अंतःकरण की वासना षट्विकारों को साथ लेकर आती है, इसलिए वासना का वध किए बिना अंतःकरण शुद्ध नहीं हो सकता और शुद्ध अंतःकरण के बिना श्रीकृष्ण की बाललीला को समझना असंभव है। ॑ये यथा मां प्रपद्मन्ते तांसतथैव भजाम्यहम, के अनुसार भगवान भक्तों के भावानुसार ही आचरण करते हैं। वस्तुतः पूतना पूर्व जन्म में राजा बलि की कन्या रत्नमाला थी । श्री वामन भगवान के बाल स्वरूप पर रीछकर मन ही मन भगवान को दुग्धपान कराने का संकल्प किया था जिसे पूतना के रूप में प्राप्त हुआ ।भगवान भोग रूपी शकटासुर और अभिमान रूपी तृणावर्त का भी वध करते हैं। भोगवृत्ति और अहंकार दोनों ही पतन का कारण है। पाप को प्रतिष्ठित करने वाला अघासुर। भी भगवान के हाथों मुक्त हो गया। भगवान वस्तु के भूखे नहीं हैं, अपीतु भाव के भूखे हैं। विषपान कराने वाली पूतना को भी सारुप्य मुक्ति मिली जो भविष्य में माता यशोदा को मिलने वाली है।

भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा अपने सखा मंडली के साथ किए गए माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन प्रसंग, कालीय नाग के मान मर्दन कर यमुनाजी के जल को शुद्ध करने की कथा, गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठ उंगली में धारण कर इंद्र के घमंड को नष्ट करने की कथाओं को विस्तार पूर्वक बीच- बीच में भजन गा-गाकर महाराजजी द्वारा सुनाया गया। कथाओं के बीच-बीच में प्रसंगा नुकूल झांकी का प्रदर्शन कर भी श्रोता समाज को दिखाया गया। आज की कथा प्रसंग में अंतिम प्रसंग रासलीला का श्रवण कराते हुए महाराजजी ने बताए कि रास शब्द का मूल है रस और रस स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही है।॑ रसो वैसः॑ जब भगवान स्वयं अनंत रस समूह में प्रकट होकर रूप, लीला, धाम और विभिन्न आलंबन एवं उद्दीपन के रूप में कीड़ा करें— उसका नाम रास है। रास पंचा ध्यायी का प्रथम शब्द है –भगवान और अंतिम शब्द है विष्णोः अर्थात यह साक्षात आनंदघन योगेश्वरेश्वर आत्माराम भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला है जिसमें कामदेव का प्रवेश नहीं। शरद पूर्णिमा की रात्रि में आनंद की जो अंतिम सीमा है उस अंतिम सीमा वाले आनंद को राधाकृष्ण ने जीवों को दिया था इसलिए शरद पूर्णिमा को सर्वश्रेष्ठ पर्व भी कह सकते हैं।

ज्ञानियों को दिव्यानंद व परमानंद अथवा ब्रह्मानंद मिलता है वह निम्न कक्षा का आनंद होता है ।उसके बाद सगुन साकार का आनंद प्रारंभ होता है ।उसमें भी अनेक स्तर हैं— शांत भाव का प्रेमानंद उससे ऊंचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊंचा सख्य भाव का प्रेमानंद उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद और इन सबसे ऊंचा होता है सकाम माधुर्य भाव का प्रेमानंद। माधुर्य भाव में भी तीन स्तर हैं– साधारण रति, समंजसा रति एवं समर्था रति। समर्था रति का प्रेमानंद जिनको मिलता है वह सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों खराबों में किसी एक को मिलता है। उस रस को महारास के रूप में राधाकृष्ण ने जीवों को वितरित किया था। साधारण जीवों को भगवान की नकल नहीं करनी चाहिए। श्री रामचरितमानस में प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी लिखे हैं कि—- समरथ को नहीं दोष गुसाईं। रवि पावक सुरसरि की नाई।। अर्थात सूर्य की किरणें दुर्गंधित व गंदी जगह में और मनुष्य पर भी पड़ती है किंतु सूर्य अशुद्ध नहीं होता। शुकदेव जी परमहंस होकर राजा परीक्षित को यह कथा सुना रहे हैं और स्वयं कामारी भगवान शंकर इस लीला के साक्षी बने। इस लीला को श्रवण करने मात्र से हृदय के काम विकार शमूल नष्ट हो जाते हैंऔर भगवान की पराभक्ति प्राप्त हो जाती है।

बिलाईगढ़ में चल रहे इस भागवत कथा में आसपास के गांव बांसउरकुली, टाड़ापारा, गोविंदवन, खजरी, छपोरा आदि गांवों से हजारों की संख्या में लोग बाग आकर इस कथा को श्रवण कर लाभ उठा रहे हैं। बिलाईगढ़ सहित आसपास के गांवों में शांति, भक्ति का माहौल निर्मित हो गया है। यत्र तत्र लोगों में महाराजजी के कथा की चर्चा चल रही है।

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