अस्पताल से 1 साल से लापता 82 साल का कोरोना मरीज, अब तक नहीं ढूंढ पाई UP सरकार, SC ने लगाई फटकार
उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक 82 वर्षीय कोविड मरीज का अस्पताल से लापता होना एक रहस्य बन गया है. वह बुजुर्ग कोविड की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल से लापता हो गया था और वह अभी भी लापता है. दर-दर भटकने वाला परिवार उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए मुआवजे से संतुष्ट नहीं है. इसको ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मामले की उचित जांच करने और दो महीने में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है.
30 सितंबर को अगली सुनवाई
जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली के साथ ही चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हमारी राय है कि मामले में उचित जांच पूरी की जानी चाहिए और स्थिति रिपोर्ट दायर की जानी चाहिए. हम याचिकाकर्ताओं – यूपी राज्य – को घटना की उचित जांच करने और आज से दो महीने की अवधि के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हैं. शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को निर्धारित की है. इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने किया.
50 हजार रुपये मुआवजा
बुजुर्ग के बेटे का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता विनोद कुमार तिवारी ने कहा कि मेरे मुवक्किल के पिता का पता नहीं चल रहा है. राज्य सरकार मुआवजे के रूप में केवल 50,000 रुपये की पेशकश कर रही है, जो हमें स्वीकार्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने यूपी सरकार को एक का संचालन करने का निर्देश दिया था. दो महीने में उचित जांच हो, क्योंकि मेरे मुवक्किल के पिता के ठिकाने का कोई सुराग नहीं है. शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रतिवादी (लापता व्यक्ति के बेटे) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने राज्य द्वारा प्रस्तावित मुआवजे पर आपत्ति जताई है और हाईकोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिका में की गई प्रार्थना (ए) पर जोर दिया है.
ऐसे कैसे गायब हो गया आदमी?
शीर्ष अदालत ने 6 मई को उक्त व्यक्ति को उनके सामने पेश करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश पारित किया, जिसमें विफल रहने पर राज्य के अधिकारियों को अदालत के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना था. शीर्ष अदालत ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. हालांकि, उस व्यक्ति का पता नहीं लगाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई भी की गई. शीर्ष अदालत ने तब यूपी के अतिरिक्त महाधिवक्ता से पूछा था कि आदमी कैसे गायब हो सकता है, क्योंकि उसका ऑक्सीजन का स्तर कम था और वह चलने में भी असमर्थ था. अदालत ने कहा कि उन्हें गायब हुए एक साल हो गया है. परिवार की हताशा की कल्पना कीजिए. परिवार की पीड़ा को देखिए.
श्मशान की भी जांच की गई
एएजी ने कहा कि राज्य ने उस व्यक्ति का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है और उन्हें खोजने के लिए सभी संसाधनों को तैनात किया गया है, फिर भी उनका पता नहीं चल पाया है. पीठ ने आगे पूछा कि क्या राज्य सरकार ने उनके शव की तलाश की है? वकील ने जवाब दिया कि संबंधित अधिकारियों ने प्रयागराज में सभी श्मशान केंद्रों की जांच की है. जस्टिस मुरारी ने तब टिप्पणी की थी कि मतलब, वह हवा में गायब हो गए?
पोस्टर भी लगाए
वकील ने जवाब दिया कि यह घटना दूसरी कोविड लहर के चरम के दौरान हुई थी और कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लाश को पेश करने के लिए कहा है, लेकिन एक लापता व्यक्ति के मामले में यह संभव नहीं है. वकील ने आगे विस्तार से बताया कि अधिकारियों ने रंगीन पोस्टर भी लगाए हैं और लापता व्यक्ति के बारे में टीवी और रेडियो पर जानकारी चलाई है, हालांकि हाईकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव सहित 8 अधिकारियों को तलब किया था.
सीसीटीवी फुटेज की जांच
पीठ ने पूछा कि राज्य सरकार कितना मुआवजा देगी? वकील ने कहा वह 82 साल के थे. वह कौशांबी में एक जूनियर इंजीनियर थे. उन्होंने कहा कि एफएसएल अभी भी सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रहा है. उक्त बुजुर्ग के बेटे ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, जिसमें उनके पिता को अस्पताल की हिरासत से रिहा करने की मांग की गई थी. अप्रैल में, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों को उक्त व्यक्ति को 6 मई को अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया था, जिसमें विफल रहने पर, राज्य के अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से उनके सामने उपस्थित रहना था. इस आदेश को चुनौती देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत का रुख किया था. शीर्ष अदालत ने राज्य को मुकदमे के खचरें को कवर करने के लिए प्रारंभिक राशि के रूप में प्रतिवादियों को 50,000 रुपये की राशि का भुगतान करने का भी निर्देश दिया.