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दाई के पीरा अउ ददा के सहारा ल समझव गा संगे मा राख़व ग नवा पीढ़ी, वृद्धा अवस्था मे दाई अउ ददा के हालात, झन भुला माँ बाप ल

दाई के पीरा अउ ददा के सहारा ल समझव गा संगे मा राख़व ग नवा पीढ़ी, वृद्धा अवस्था मे दाई अउ ददा के हालात, झन भुला माँ बाप ल

जब माता-पिता इस बात को समझने लगते हैं कि किन चीजों में मर्यादा रखी जाए, कहां प्रोत्साहित किया जाए और कहाँ अंकुश रखा जाए, तो उनके बच्चें बिगड़ेंगे नहीं। इस तरह वे अच्छे माता-पिता बन सकते हैं। जब लोग यह नहीं जानते कि एक अच्छे माता-पिता कैसे बनें, तो दोनों के बीच दूरियाँ विकसित होती है। इसी कहानी को लेकर सतीश जैन ने अनुज शर्मा की एक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म झन भुला माँ बाप ल बनाया गया है. जहाँ अभी के परिवेश मे माँ बाप और बच्चे के बीच होने वाली घटनाओं का वर्णन किया गया है. उसी फ़िल्म का चार पंक्ति प्रस्तुत है.

नौ महिना ले कोख में रखथे

कतको जोखिम सहिथे जी

नवा जनम देथे त ओला

दाई कोनो कहिथे जी

बाप के पद विद्वान बनाथे

कतको अंगठा छाप ला

सुख मा दुख मा कभु – कहों तुम

झन भूलौ मां बाप ला…..

माता-पिता की कोशिश रहती है कि वे अपने बच्चों को हर वो चीज मुहैया करवाएं, जो उन्हें हासिल नहीं हुई। चाहे वह अच्छे स्कूल में पढ़ाई हो, या, आलीशान बर्थडे पार्टी हो या विदेश की सैर। बच्चों को बिना मांगे बहुत कुछ मिल रहा है और बिना चाहे मिल रहा है अंधाधुंध प्रतियोगिता, माता-पिता की बढ़ती अपेक्षाएं और अपने आप को साबित करने का दबाव। छत्तीसगढ़ के निवासी एक बार इस मूवीव फ़िल्म को जरूर देखें और माँ बाप अपने बच्चें के प्रति क्या करते हैं और शादी के बाद बेटा अपने माँ बाप के बारे मे क्या सोचते है. इस फ़िल्म के कहानी से आपको पता चल जायेगा जिसे हम अपने जीवन मे उतारकर अपना सकते हैं और माँ बाप व बच्चे के दुरी को दूर कर सकते हैं.

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