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ग्राम खुरसूला में ग्रामवासीयों के द्वारा विश्व कल्याण हेतु 21 से 28 दिसम्बर तक श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन

ग्राम खुरसूला में ग्रामवासीयों के द्वारा विश्व कल्याण हेतु 21 से 28 दिसम्बर तक श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन

29 दिसम्बर को विष्णु सहस्त्रनाम, गीतापाठ, तुलसी वर्षा पूर्णाहुति सहस्त्रधारा स्नान के साथ समापन

बिलाईगढ—विकासखंड बिलाईगढ़ के ग्राम खुरसूला में ग्रामवासीयों के द्वारा विश्व कल्याण हेतु श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया है ।कथा दिनांक 21.12.2024 शनिवार से दिनांक 28.12.2024 तक होगा। कथा दो सत्र में प्रात लगभग 9:00 से 12:00 तक एवं दोपहर लगभग 3:00 से हरि कृपा तक हो रहा है। दिनांक 29.12.2024 रविवार को विष्णु सहस्त्रनाम, गीतापाठ, तुलसी वर्षा पूर्णाहुति सहस्त्रधारा स्नान के साथ विश्राम लेगी विकासखंड कसडोल के ग्राम बरेली के कथावाचक पंडित रामचंद्र पांडेय जी व्यासासीन होकर अपनी मधुर एवं सरस वाणी में संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा का गुणगान कर रहे हैं। कथा के पंचम दिवस दिनांक 25.12.2024 को प्रातः कालीन सत्र में महाराज जी ने कथा सुनाते हुए बताये कि भगवत्कीर्तन कहीं पर भी हो तो नृत्य जरूर करना चाहिए । जो व्यक्ति भगवत्कीर्तन में नृत्य करता है उसे 84 के चक्कर से छुट्टी मिल जाती है । वह व्यक्ति मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य भगवत्प्राप्ति कर लेता है ।उसका दुख दर्द समाप्त होकर उसे आनंद की प्राप्ति हो जाती है। आजकल देश समाज के अधिकांश लोग शराब एवं अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन कर डीजे के साथ नृत्य करते हैं ।शादी विवाह अन्य उत्सव के साथ-साथ गणेश विसर्जन दुर्गा विसर्जन में अधिकांशतः ऐसा दृश्य देखा जा सकता है। ऐसा कृत्य व्यक्ति परिवार देश समाज के लिए बहुत ही कष्टकारी है। ऐसा करने वाले को नरक जाना ही पड़ता है ।उसके परिवार में दुख अशांति आ जाती है। उसका परिवार जीते जी नरकमय हो जाता है। इसलिए कभी भी कहीं पर नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। नशीली वस्तुओं का सेवन करना परिवार सहित उस गांव व समाज के लिए दुखदायी होता है।

कथावाचक पंडित रामचन्द्र पांडेय जी ने श्रीमद् भागवत महापुराण के अंतर्गत रामकथा सुनाते हुए बताये कि अयोध्या के राजा दशरथ जी के यहां श्रृंगी ऋषि द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ किए जाने के बाद चार पुत्रों का अवतरण हुआ ।अयोध्या में बाजे गाजे के साथ राम जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। वशिष्ठ जी चारों सुकुमारों का नामकरण किये। मुनि विश्वामित्रजी ने यज्ञ रक्षा के लिए राम लखन को मांग कर ले गये। जहां ताड़का सुबाहू मारीच आदि निशाचरों का वध श्री रामचंद्रजी द्वारा किया गया। विश्वामित्र जी के यज्ञ को इस तरह पूर्ण किया। आगे मार्ग में अहिल्या का उद्धार करते हुए शंकरजी के विशाल धनुष को रामचंद्रजी ने तोड़ा ।धनुष टूटने पर क्षत्रिय भूषण भगवान परशुराम जी पधारे । अंततः परशुराम जी अपना धनुष श्री रामचंद्र जी को समर्पित कर तपस्या के लिए वन को चले गए। रामचंद्र जी सहित चारों भाइयों का विवाह जनकपुर में आनंद उत्साह के साथ संपन्न हुआ। अयोध्या में श्री रामचंद्रजी को योग्य समझकर महाराज दशरथ जी ने राज्याभिषेक की तैयारी करवाया एवं राजगद्दी देना चाहा।किन्तु मंथरा के बहकावे में आकर रानी कैकेयी ने महाराज दशरथ जी से दो वरदान मांगी। भरतजी के लिए अयोध्या का राजतिलक एवं रामचंद्रजी को 14 वर्ष का तपस्वी वेश में वनवास। वरदान के कारण रामचंद्रजी वन को चले गए । लक्ष्मण जी एवं सीता जी भी उनके साथ बन को चले गए। गंगा नदी में केवट के साथ मित्रता कर केवट के नाव में चढ़कर गंगा नदी को पार किए। भरद्वाजजी से मिलते हुए यमुना नदी पार कर चित्रकूट में प्रभु ने निवास किया। भरतजी को ननिहाल से गुरु वशिष्ट जी द्वारा बुलाया गया। भरतजी ने दशरथ जी का अंत्येष्टि क्रिया कर्म किया।भरतजी रामचंद्रजी को लौटाने चित्रकूट गुरु वशिष्ठ, सभी माताए ,अयोध्या पुरवासियों के साथ चतुरंगनी सेना लेकर गए। अंतत भरत जी श्री रामचंद्रजी के पादुका लेकर अयोध्या वापस आए । पादुका को राज सिंहासन में बैठाकर नंदी गांव में भूमि के अंदर भरतजीने तपस्या करते हुए राज्य कार्य का संचालन किया।

आगे कथावाचक महाराज जी ने बताये कि रामचंद्र जी अत्रि अनसूया से मिलते हुए सरभंग सुतीक्ष्ण अगस्त ऋषियों को सुख देते हुए पंचवटी में कुटी बनाकर निवास किया। पंचवटी में शूर्पणखा के नाक का विरूपी करण लक्ष्मणजी के द्वारा किया गया। रावण साधु का भेष बनाकर आया। सीता जी का हरण कर अशोकवाटिका में सीताजी को रखा। श्रीरामचंद्रजी लक्ष्मणजी सहित सीताजी का पता लगाते हुए शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिए। जटायु का दाह संस्कार कर किष्किंधा में सुग्रीव से मित्रता किये।बाली का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाकर प्रवर्षण पर्वत में निवासकिये।बानरों को सीताजी का पता लगाने भेजा गया। हनुमान जी सीता जी का पता लगाकर लंका जलाकर सीता जी का संदेश प्रभु श्री रामचंद्रजी को सुनाया ।बानरी सेना लेकर श्री रामचंद्रजी ने रावण सहित समस्त राक्षसों का वध किया। विभीषणजी को लंका का राजा बनाकर सीताजी सहित रामचंद्र जी अयोध्या को लौटे ।अयोध्या में गुरु वशिष्टजी ने श्री रामचंद्र जी का राज्याभिषेक किया। अयोध्या में इस तरह आनंद उत्साह उमड पड़ा ।उसी के याद में आज भी दीपावली त्यौहार मनाया जाता है।

 

इस कथा के प्रभाव से ग्राम खुरसूला सहित आसपास के गांव में शांति का वातावरण निर्मित हो गया है ।आसपास के गांव करियाटार, करबाडबरी, भंडोरा ,दाऊबंधान आदि गांव से हजारों की संख्या में लोग बाग कथा श्रवण कर इस कथा का लाभ उठा रहे हैं।

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