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मानव जन्म के लक्ष्य भगवतप्रेम प्राप्ति का प्रमुख साधन है श्रीमद् भागवत कथा— सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी काल के भय से मुक्त कराता है श्रीमद्भागवत कथा –सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी समाज को क्रांति देने वाला शास्त्र है श्रीमद्भागवत— सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी

मानव जन्म के लक्ष्य भगवतप्रेम प्राप्ति का प्रमुख साधन है श्रीमद् भागवत कथा— सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी

काल के भय से मुक्त कराता है श्रीमद्भागवत कथा –सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी

समाज को क्रांति देने वाला शास्त्र है श्रीमद्भागवत— सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी

बिलाईगढ़ /प्रज्ञा न्यूज़ 24 छत्तीसगढ़ /शैलेंद्र देवांगन

बिलाईगढ़ । विकासखंड बिलाईगढ़ के वनांचल पर स्थित ग्राम झरनीडीह में सप्तदिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन श्रीराम साहू, श्रीमती चंद्रिकादेवी साहू एवं उनके परिवार द्वारा विश्व कल्याण हेतु दिनांक 13- 5-2024 से 19 -५- 2024 तक आयोजित है। कथा का समय दोपहर 3:00 बजे से हरि इच्छा तक नियत है ।सरायपाली छत्तीसगढ़ से आई हुई कथावाचिका सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी व्यासासीन होकर अपनी सुमधुर शैली में शांत मन से दत्तचित्त होकर संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा का रसास्वादन करा रही हैं ।कथा स्थानीय बोली में कही जा रही है, ताकि कथा सुनने वालों के समझ में बड़ी सरलता से आ जाए। कथा आयोजक श्रीराम साहू वरिष्ठ आंतरिक लेखा परीक्षण एवं करारोपण अधिकारी निवासी ग्राम झरनीडीह ने बताया कि दिनांक 13 -5- 2024 सोमवार को कलश यात्रा प्रातः 9:00 बजे शुरू होगी ।उसके बाद यथा समय श्रीमद्भागवत रूपी अमृत कथा का शुभारंभ होगा। दिनांक 14- 5.-2024 मंगलवार को शिव पार्वती विवाह, 15- 5.-2024 बुधवार को ध्रुव प्रहलाद चरित्र, 16.5.2024 गुरुवार को वामन अवतार श्रीराम जन्म श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, 17.5.2024 शुक्रवार को श्रीकृष्ण की बाल लीला गोवर्धन पूजा 56 भोग, 18 5.2024 शनिवार को रासलीला रुक्मणी मंगल, 19 -५- 2024 रविवार को सुदामा चरित तुलसी वर्षा पूर्णाहुति भंडारा के साथ कथा विश्राम लेगी। कथा आयोजक श्रीराम साहू, श्रीमती चंद्रिका देवी साहू एवं कथावाचिका सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी ने अधिक से अधिक लोगों को उपस्थित होकर इस कथा का लाभ उठाने के लिए निवेदन किए हैं।

कथावाचिका सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी ने कथा सुनाती हुई बताई की श्रीमद् भागवत स्वयं भगवान के मुख से नि:सृत कलिकाल का पंचम वेद है। यह व्यक्ति को शांति एवं समाज को क्रांति देने वाला एकमात्र शास्त्र है, जो मानव जीवन में विशुद्ध प्रेम की स्थापना करते हुए मृत्यु को भी मंगलमय कर देता है और जीव को काल के भय से मुक्त कर देता है। श्रीमद्भागवत आध्यात्मिक रस वितरण की सार्वजनिक प्याऊ है, जिसमें ज्ञान वैराग्य और भक्ति का अनूठा संगम है ।परम सत्य की अनुभूति कराते हुए नर को नारायण पद प्राप्त कराने का उत्तम सोपान है– श्रीमद्भागवत। तीनों प्रकार के तापों से मुक्ति का आश्रय है भागवत ।जो तन के रोगों से पीड़ित हैं ,मन के विकारों से ग्रसित है और धन के भय से आक्रांत है ऐसे जीवों के लिए भागवत साक्षात कल्पवृक्ष है। स्कन्ध पुराण में वर्णित है- धनम् पुत्रांस्तथा दारान वाहनादि यथो गृहान। असापत्न्यं च राज्यं च द द्याद भागवती कथा।। अर्थात भागवत की कथा धन पुत्र स्त्री वाहनादि यश मकान और निष्कंटक राज्य भी दे सकती है, किंतु निष्काम प्रेमियों के लिए कलयुग में साक्षात श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाला और नित्य प्रेमानंद रूप फल प्रदान करने वाला है ।यहां इसलिए माता कुंती भगवान श्री कृष्ण से भौतिक संपदा न मांग करके केवल विपत्तियों का ही वरदान मांगती है, क्योंकि विपत्ति में प्रत्येक क्षण प्रभु का स्मरण बना रहता है ।ऐसे सुख लेकर क्या करें जो परमात्मा की विस्मृति करा दे ।गोविंद को भूल जाना ही सबसे बड़ी विपत्ति है और कन्हैया की याद बनी रहे यही सबसे बड़ी संपत्ति है। हनुमानजी स्वयं कहते हैं —कह हनुमंत विपति प्रभु सोई। जब तब सुमिरन भजन न होई ।।ऐसे निष्काम भक्तों के लिए भगवान स्वयं घोषणा करते हैं —अनुवरजाम्यहं नित्यम पृयेयेत्यड: घिरेणुभि:। अर्थात “मैं स्वयं उन भक्तों के पीछे-पीछे सदा इसलिए फिरा करता हूं कि उनके चरण रज से पवित्र हो जाऊं।”

कथावाचिका सुश्री डॉक्टर प्रियंका त्रिपाठीजी ने आगे नारद एवं भक्ति देवी के संवाद, भागवत कथा श्रवण से भक्तिदेवी के दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य के मूर्छा दूर होने की कथा को विस्तार से कह कर सुनाई उसके बाद गौकर्ण एवं धुंधकारी के कथा को भी कह करके श्रोता समाज को सुनाई।कथा के बीच-बीच में संगीतमयी भजन गाकर श्रोताओं को नृत्य करने पर विवश कर दी। आगे कथा वाचिका ने कथा सुनाती हुई और बताई कि मानव देह का खास लक्ष्य भगवत प्रेम या भगवान की प्राप्ति है ।जब तक जीव भगवत प्रेम की प्राप्ति नहीं कर लेता है तब तक उसकी यात्रा अनंत काल तक चलते रहती है ।भगवतप्रेम प्राप्ति का प्रमुख साधन भागवत्कथा, नाम जप व सत्संग है ।कथा श्रवण से भगवान की महिमा, भगवान की कृपालता का पता चलता है। जिससे भगवान के प्रति प्रेम बढ़ता है। जीव की व्यथा कथा श्रवण से मिटता है। मन को शांति भी कथा श्रवण से मिलती है। कथा श्रवण से मन में निर्मलता आती है। इसलिए जहां भी कथा हो वहां अवश्य समय निकालकर भगवत्कथा व्यक्ति को श्रवण करना चाहिए। श्री रामचरितमानस में प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदासजी लिखते हैं कि— रामचरण रति जो चह, अथवा पद निर्वाण। भाव सहित सो यह कथा करइ श्रवण पुट पान ।।यह कथा मोक्ष चाहने वालों को मोक्ष एवं प्रेमीजनों को भगवतप्रेम प्रदान करती है। हमारे देश के प्रसिद्ध संत श्री कबीर दासजी ने क्या खुब कहा है कि बहुत सारे वेद शास्त्र धर्मग्रंथो को पढ़ लें और यदि हमारे जीवन में भगवान के चरणों में प्रेम नहीं है, तो ऐसे अध्ययन से व्यक्ति व संमाज को कोई विशेष लाभ नहीं मिलने वाला है। वह व्यक्ति तो पंडित कहलाने योग्य भी नहीं है । पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े से पंडित होय।।

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