अपनी अपनी बुराइयों का हवन कर हुआ भगवत गीता का समापन

अपनी अपनी बुराइयों का हवन कर हुआ भगवत गीता का समापन
चंदराम बंजारे, प्रज्ञा 24 न्यूज
बिलाईगढ़ – ब्लॉक बिलाईगढ़ के अंतर्गत ग्राम पंचायत धोबनी(सरसीवां) में चल रहे नौ दिवसीय आध्यात्मिक श्रीमद भागवत गीता का समापन मंगलवार को हुआ। नौवे दिवस सत्संग में कथा वाचिका परम श्रद्धेय ब्र. क़ु. उमा दीदी ने सुंदर समाज निर्माण के लिए गीता के कई उपदेश के माध्यम अपने को उस अनुरूप आचरण करने को कहा। जो काम प्रेम से संभव है वह हिंसा से संभव नही हो सकता है।आज दुनिया में कौरवों की कमी नही है पर समाज में पांडव इतने मुट्ठी भर लोगों के अच्छे कर्मों के कारण ही आज दुनिया टीकी हुई है।
उन्होंने कहा कि आज का मानव के पास धन-दौलत, इज्जत,सोहरत सब कुछ है फिर दुःख,अशांति,तनाव टेंसन में है क्योंकि आज का मानव पैसा को ही सब कुछ समझता है। दिन रात सिर्फ पैसा कमाने में लगा हुआ है। पैसा कमाने के मोहवश यह भी भूल गया है कि पैसा किस तरह कमाया जाय उसका भी ज्ञान नही है।किसी की चोरी,डकौती ,पाप, अत्याचार,किसी को धोखा दे करके कमाया गया धन यदि घर में आये तो यही धन तनाव,टेंसन, दूख का कारण बनता है ।पैसा ऐसे कमाए जिससे किसी को दुःख तकलीफ न हो जिससे घर में सुख शांति का वातावरण बनता है।माताओं के लिये कहा कि घर भी एक मंदिर है माता चाहे तो घर को स्वर्ग बना दे चाहे तो नर्क ये सब उनके हाथों में है।आजकल की माताये टीवी को किचन से ऐसे सेट करवाती है जिसे देखते देखते खाना बना सके परंतु क्या यह सही है यदि माताये टीवी देखते देखते खाना बनाती है तो खाना बनाते जो भी देख रही है जो भी सोच रही है सबका प्रभाव खाना में पड़ता है।यदि टीवी में होने वाली लड़ाई झगड़ा को सोचते सोचते खाना बनाये तो खाना खाने वाले व्यक्ति के ऊपर भी उसका गलत प्रभाव पड़ेगा।माताओं को चाहिए की खान बनाते परमात्म याद में रहकर खाना बनाये ।घर भी मंदिर है मंदिर में प्रसाद सुद्धता के साथ बनाया जाता है । दीदी जी ने कहा जैसा अन्न वैसा मन,जैसी पानी वैसी वाणी, जैसा संग वैसा रंग।संगती भी सोच समझकर करना चाहिए। कौरवों का सलाहकार सकुनी था और पांडवों का सलाहकार श्रीकृष्ण थे और परिणाम क्या हुआ आप सभी जानते है।इस तरह सभी ग्रामवासीयों को आध्यात्मिक गीता ज्ञान को अपने जीवन में ग्रहण करने का उपदेश दीदी जी ने दिया।अंत में सभी को एक एक पर्ची देकर उसमे अपनी एक एक बुराई लिखने को कहा गया और उसी बुराई रूपी रावण को जलाकर यज्ञ की वेदी में स्वाहा कर कथा का समापन किया गया।