
बढ़ते तापमान के कारण बिगड़ रहा ऋतुओं का चक्र, जानिए इसके दूरगामी परिणाम और क्या कहते हैं मौसम विशेषज्ञ
छत्तीसगढ़ : weather report पूरे उत्तर भारत में इस बार गर्मी का प्रकोप जल्द ही लोगों को सताने लगा। लगातार वातावरण में परिवर्तन देखा जा रहा है।ऐसे में मन में कई बार सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इन्हीं सवालों के जवाब लेकर हम हाजिर हैं।
बढ़ते तापमान के कारण बिगड़ रहा ऋतुओं का चक्र, जानिए इसके दूरगामी परिणाम और क्या कहते हैं मौसम विशेषज्ञ
इस वर्ष गर्मी ने जल्दी दस्तक दे दी। सर्दियों के बाद जब बसंत का मौसम आना चाहिए था, उस वक्त दिन व रात का तापमान बढ़ने लगा और गर्मी शुरू हो गई। यही नहीं, हिमालय पर आने वाले जो पश्चिमी विक्षोभ पहले मैदानों में कई दिन तक बारिश कराते थे, अब वह पहले की तरह सशक्त नहीं हो रहे। ऋतुओं के इस बदलते चक्र का आखिर क्या कारण है? तापमान बढ़ने से क्या दूरगामी परिणाम होंगे? तापमान को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए? आदि सवालों को लेकर चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विभाग के कृषि मौसम वैज्ञानिक डा. एसएन सुनील पांडेय की विस्तृत बातचीत।
सवाल – तापमान में आई इस तेजी, मौसम में हो रहे बदलावों का प्रमुख कारण क्या है।
जवाब – इसका कारण मनुष्य खुद हैं। हमने पूरी पृथ्वी पर हीट आइलैंड बना दिए हैं। ये हीट आइलैंड हैं वे शहर, जहां सबसे ज्यादा औद्योगिक कारखाने हैं। हमारा कानपुर भी एेसा ही एक हीट आइलैंड है। सूरज निकलते ही यहां कुछ देर में तापमान अचानक बढ़ जाता है और फिर सूरज चढ़ने के साथ बढ़ता जाता है। यही नहीं इन आइलैंड से सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है। इसके अलावा सड़कों पर चलते वाहन, निर्माण कार्य, पेड़ों का अंधाधुंध कटान आदि भी प्रमुख कारण हैं। ये सब कारण ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं।
सवाल- ग्लोबल वार्मिंग का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
जवाब – ग्लोबल वार्मिंग को भूमंडलीय तापमान में वृद्धि के रूप में जाना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही मौसम में अनिश्चित परिवर्तन होते हैं और सीधा कुप्रभाव मनुष्य, अन्य जीवों व पर्यावरण पर पड़ता है। ग्लोबल वार्मिंग से ग्रीन हाउस प्रभाव (हरित प्रभाव) असंतुलित होता है। इसमें कार्बन डाइ आक्साइड, मेथेन व जल वाष्प की मात्रा आवश्यकता से अधिक होने लगती है, तो पृथ्वी में तापमान बढ़ता है। ग्लोबल वार्मिंग से स्वास्थ्य समस्याओं में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हो रही है। कई जीवों व पशुओं की प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। बाढ़ व सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती हैं।
सवाल – ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर पर क्या असर पड़ रहा है?
जवाब – ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक वर्ष 1880 से 2012 की अवधि के दौरान पृथ्वी के औसत सतही तापमान में 0.85 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गयी थी। ग्लोबल वार्मिग के कारण प्रकृति में बदलाव आ रहा है। कहीं भारी वर्षा तो कहीं सूखा और कहीं लू व कहीं ठंडक हो रही है। एक अध्ययन के मुताबिक अंटार्कटिका का तापमान एक सदी पहले तक माइनस 50 डिग्री होता था। अब माइनस 11 डिग्री होता है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। एेसे ही चलता रहा तो एक दिन नदियां सूख जाएंगी और समुद्र के किनारे के शहर डूब जाएंगे।
सवाल- जलवायु परिवर्तन और तापमान बढ़ने से ऋतुओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
जवाब – ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन से ऋतुओं का चक्र भी बदल रहा है। इसी वर्ष सर्दी के बाद जब एक महीने बसंत का मौसम होना चाहिए था, उसी समय गर्मी शुरू हो गई। मार्च के मध्य से ही एयर कंडीशनर चलने लगे। बारिश भी अनियमित हो रही है। पहले कई दिन तक बारिश रोज होती थी, अब एक साथ होती है और फिर कई दिन तक बादल नहीं बरसते। पहले जून से सितंबर तक पांच से छह मिलीमीटर बारिश 50 से 60 बार होती थी। अब 20 से 25 बार होती है।
सवाल- तापमान बढ़ने से फसलों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और किसान एेसे में क्या करें?
जवाब- तापमान में समय से पहले आई तेजी ने सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को ही पहुंचाया है। इस बार रबी की फसलों में किसानों को बार-बार और ज्यादा सिंचाई करनी पड़ रही है। यही नहीं, समय से पहले फसल पकने से दाने सिकुड़ रहे हैं और उत्पादन गिर रहा है। वर्तमान में गेहूं का कटान चल रहा है और अधिकांश किसानों से बातचीत में पता लगा है कि उनका उत्पादन पांच से 10 फीसद तक गिरा है। इसी तरह सब्जियों, खीरा, तरबूज, आम आदि की फसलों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। फलों में गूदा सही से नहीं बन रहा और इससे गुणवत्ता भी गिर रही है। किसानों को मौसम को देखते हुए फसलों की एेसी प्रजातियां बोनी चाहिएं, जो ज्यादा तापमान में बेहतर उत्पादन दे।
सवाल- जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए क्या करना चाहिए?
जवाब – जलवायु परिवर्तन और तापक्रम को ठीक रखने के लिए सबसे पहले हमें कार्बन उत्सर्जन रोकना होगा। साथ ही पृथ्वी को ज्यादा से ज्यादा हरा भरा बनाने की जरूरत है। प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने की बजाए उन्हें संरक्षित करने पर ध्यान देने की जरूरत है। कृषि योग्य भूमि को खाली और सूखा नहीं रखना चाहिए। फुटपाथ पर सीमेंट वाली ईंटों के स्थान पर इंटरलाकिंग टाइल्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, ताकि वर्षा का पानी जमीन के अंदर प्रवेश कर सके। कंक्रीट का प्रयोग कम करना होगा, क्योंकि इमारतें बनाने में प्रयोग होने वाली सीमेंट, कंक्रीट आदि वस्तुएं भी ऊष्मा को लंबे समय तक अवशोषित करती हैं और रात के समय उसे उत्सर्जित करती हैं।